Starlink भारत में कब आएगा और कितने का होगा?
📢 ब्रेकिंग न्यूज़: भारत में इंटरनेट सेवा पर बड़ा खतरा, Google, Jio और Airtel अलर्ट पर!
🗳️बरेली बार एसोसिएशन चुनाव 2025
iPhone टूटा? अब टेंशन नहीं!
🎙️ 🔴 बड़ी खबर: रात में उड़ते ड्रोन को लेकर प्रशासन ने दी सफाई | सुरक्षा के लिए उड़ाए जा रहे हैं ड्रोन
क्रिप्टो प्लेटफॉर्म CoinDCX पर साइबर हमला, 378 करोड़ रुपये की चपत
📰 जापान की H2L ने पेश की ‘Capsule Interface’ — आपका शरीर अब रोबोट का रिमोट!
पायलट संघों ने एयर इंडिया दुर्घटना रिपोर्ट की कवरेज को लेकर मीडिया घरानों को भेजा नोटिस
टिकटॉक का अमेरिकी व्यापार में विस्तार और चीन की जड़ों की ओर वापसी: एक गहन विश्लेषण
भारत के ग्रैंड मुफ्ती की पहल पर निमिषा प्रिया की फांसी टली, यमन में भारतीय नर्स को मिली बड़ी राहत
Tesla की भारत में एंट्री: संघर्ष से सफलता तक का अदम्य सफर!
भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में क्रांति: ‘ड्रैगन’ की दादागिरी को चुनौती

उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में एक हृदयविदारक घटना ने पूरे स्वास्थ्य तंत्र की पोल खोल दी है। 26 वर्षीय सरफराज़, जो अपने पैरों पर चलकर मेडिकल अस्पताल पहुंचा था, डायलिसिस के लिए भर्ती हुआ। इलाज की प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन जैसे ही डायलिसिस के बीच में बिजली चली गई, सारी उम्मीदें और ज़िंदगियाँ ठहर सी गईं।

डायलिसिस मशीन में आधा खून था जो शरीर में वापस जाना था, लेकिन मशीन रुक गई। सरफराज़ तड़पने लगा, बेचैन हो गया। उसके साथ मौजूद मां ने अस्पताल के स्टाफ से हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाया — “बेटे को कुछ हो जाएगा, जेनरेटर चला दो…” पर अफसोस, जवाब मिला कि “डीजल नहीं है”।

क्या यही है हमारे देश का स्वास्थ्य तंत्र? एक ज़िंदा इंसान की जान को बचाने के लिए जो बुनियादी चीज़ – जेनरेटर या डीज़ल – की ज़रूरत थी, वो नहीं मिल सकी।

सरफराज की मां की आंखों के सामने उसका बेटा धीरे-धीरे ज़िंदगी की जंग हार गया और अस्पताल प्रशासन सिर्फ खड़े होकर तमाशा देखता रहा।

यह घटना न सिर्फ दर्दनाक है, बल्कि यह कई गंभीर सवाल भी खड़े करती है:

जब अस्पतालों में डायलिसिस जैसी जानलेवा स्थिति का इलाज होता है, तो बिजली बैकअप की क्या तैयारी है?

क्या कोई इमरजेंसी प्रोटोकॉल नहीं होता?

क्या एक इंसान की जान इतनी सस्ती है?

सरफराज़ की मौत किसी बीमारी से नहीं, बल्कि व्यवस्था की बेरुख़ी, प्रशासन की लापरवाही और इंसानियत की कमी से हुई है।

अब सवाल उठता है कि इस मौत का जिम्मेदार कौन है?

अस्पताल प्रशासन?

स्वास्थ्य विभाग?

सरकार?

या पूरा सिस्टम जो एक गरीब की आवाज़ नहीं सुनता?

सरफराज अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उसकी मां की चीख, उसकी आंखों में उतरता खौफ, और ये खामोशी पूरे देश से इंसाफ मांग रही है।

अब ये हम पर है कि हम इसे एक “न्यूज़” की तरह पढ़कर भूल जाएं, या एक जिम्मेदार नागरिक बनकर सवाल उठाएं —
“कब तक जानें यूं ही जाती रहेंगी और सिस्टम यूं ही खामोश रहेगा?”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *