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अहमदाबाद:
हाल ही में हुए एक दर्दनाक विमान हादसे ने न सिर्फ कई ज़िंदगियाँ लील लीं, बल्कि बचे हुए लोगों को भी गहरे ज़ख्म दे गया। डॉ. अनिल एक ऐसे ही व्यक्ति हैं, जिनका परिवार इस त्रासदी का सीधा शिकार बना। जब यह प्लेन क्रैश हुआ, उस समय डॉ. अनिल और उनकी पत्नी अस्पताल में ड्यूटी पर थे, लेकिन उनका घर हादसे की चपेट में आ गया।

इस भयावह हादसे में उनकी छोटी बेटी और घर पर काम करने वाली मेड की मौके पर ही मौत हो गई। एक पल में खुशहाल परिवार उजड़ गया।

अब, प्रशासन ने डॉ. अनिल को उस घर को खाली करने का नोटिस थमा दिया है—वही घर जो अब उनकी बेटी की यादों का आखिरी सहारा बन चुका है।

भावुक डॉ. अनिल का कहना है:

> “मेरी बच्ची वहीं एडमिट है… कृपया हमें थोड़ा वक्त दीजिए। हम अभी भी सदमे में हैं। उस घर में मेरी बेटी की हर मुस्कान, हर खिलखिलाहट बसी है। मैं उससे अभी जुदा नहीं हो सकता।”

प्रशासन की मजबूरी और सिस्टम की प्रक्रिया अपनी जगह है, लेकिन सवाल ये है कि क्या इंसानियत को थोड़ा वक़्त नहीं दिया जा सकता?
क्या एक टूटे पिता को अपनी बच्ची से आखिरी बार मिलने की मोहलत भी नहीं मिलनी चाहिए?

इस पूरे मामले ने सोशल मीडिया पर भी लोगों का ध्यान खींचा है। कई लोग प्रशासन से अपील कर रहे हैं कि इस परिवार को कुछ और दिन उसी घर में रहने की इजाज़त दी जाए ताकि वह मानसिक रूप से खुद को संभाल सकें।

📌 निष्कर्ष:

जहां एक ओर हादसे की जांच और सुरक्षा को लेकर सख़्त कदम उठाने की ज़रूरत है, वहीं दूसरी ओर ज़रूरत है थोड़ी संवेदनशीलता की।
डॉ. अनिल जैसे लोगों को हमारे सिस्टम से सिर्फ कानूनी नहीं, इंसानी समर्थन भी चाहिए।

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