फ़लस्तीन के समर्थन में अपने विश्वविद्यालय कैंपस में शांतिपूर्ण आंदोलन करने वाले युवा मोहम्मद खलील को लेकर बड़ी खबर सामने आई है। अमेरिका की ट्रंप सरकार ने उन पर सख्त कार्रवाई करते हुए उन्हें देश से निकालने की प्रक्रिया शुरू की थी। खलील पर आरोप था कि उन्होंने अमेरिकी ज़मीन पर “राष्ट्र विरोधी” गतिविधियों को बढ़ावा दिया, जबकि उनका असल मकसद फ़लस्तीन में हो रहे अत्याचारों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना था।
मोहम्मद खलील को पहले हिरासत में लिया गया और उनके वीज़ा को रद्द कर अमेरिका से डिपोर्ट करने की कोशिश की गई। लेकिन अब कोर्ट ने उन्हें बड़ी राहत देते हुए सभी आरोपों से बरी कर दिया है। न्यायालय ने माना कि खलील का आंदोलन शांतिपूर्ण था और अमेरिकी संविधान के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत आता है।
यह फ़ैसला उन तमाम छात्रों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए उम्मीद की किरण है, जो वैश्विक अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हैं। यह मामला इस बात की मिसाल भी बन गया है कि लोकतंत्र में हर व्यक्ति को अपने विचार रखने और मानवाधिकारों के पक्ष में खड़े होने का अधिकार है, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या राष्ट्रीयता से ताल्लुक रखता हो।
यह घटना अमेरिका में बढ़ते इस्लामोफोबिया और फ़लस्तीन के समर्थन को अपराध ठहराने की राजनीति पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है। ट्रंप प्रशासन के दौर में जिस तरह से मुसलमानों और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया, वह अब धीरे-धीरे न्यायपालिका के हस्तक्षेप से उजागर हो रहा है।