image_editor_output_image773089748-1755075111923 इस्लाम में खुदकुशी हराम है। यह अल्लाह के हुक्म की खिलाफ़वर्जी है। लेकिन जब कोई इमाम — जो ख़ुद दूसरों को सब्र और तवक्कुल का पैग़ाम देता है — खुद इस रास्ते को चुन ले, तो सोचिए उसके हालात कितने संगीन रहे होंगे।
image_editor_output_image-1386118003-1755010221985 इस्लाम में खुदकुशी हराम है। यह अल्लाह के हुक्म की खिलाफ़वर्जी है। लेकिन जब कोई इमाम — जो ख़ुद दूसरों को सब्र और तवक्कुल का पैग़ाम देता है — खुद इस रास्ते को चुन ले, तो सोचिए उसके हालात कितने संगीन रहे होंगे।
image_editor_output_image1238227552-1754886037048 इस्लाम में खुदकुशी हराम है। यह अल्लाह के हुक्म की खिलाफ़वर्जी है। लेकिन जब कोई इमाम — जो ख़ुद दूसरों को सब्र और तवक्कुल का पैग़ाम देता है — खुद इस रास्ते को चुन ले, तो सोचिए उसके हालात कितने संगीन रहे होंगे।
image_editor_output_image1090577405-1754726120168 इस्लाम में खुदकुशी हराम है। यह अल्लाह के हुक्म की खिलाफ़वर्जी है। लेकिन जब कोई इमाम — जो ख़ुद दूसरों को सब्र और तवक्कुल का पैग़ाम देता है — खुद इस रास्ते को चुन ले, तो सोचिए उसके हालात कितने संगीन रहे होंगे।
file_000000005b6061f984d117d95771c8f1 इस्लाम में खुदकुशी हराम है। यह अल्लाह के हुक्म की खिलाफ़वर्जी है। लेकिन जब कोई इमाम — जो ख़ुद दूसरों को सब्र और तवक्कुल का पैग़ाम देता है — खुद इस रास्ते को चुन ले, तो सोचिए उसके हालात कितने संगीन रहे होंगे।
image_editor_output_image-129420540-1754112408641 इस्लाम में खुदकुशी हराम है। यह अल्लाह के हुक्म की खिलाफ़वर्जी है। लेकिन जब कोई इमाम — जो ख़ुद दूसरों को सब्र और तवक्कुल का पैग़ाम देता है — खुद इस रास्ते को चुन ले, तो सोचिए उसके हालात कितने संगीन रहे होंगे।
image_editor_output_image-561597129-1753632450082 इस्लाम में खुदकुशी हराम है। यह अल्लाह के हुक्म की खिलाफ़वर्जी है। लेकिन जब कोई इमाम — जो ख़ुद दूसरों को सब्र और तवक्कुल का पैग़ाम देता है — खुद इस रास्ते को चुन ले, तो सोचिए उसके हालात कितने संगीन रहे होंगे।
image_editor_output_image-1908284001-1753380292572 इस्लाम में खुदकुशी हराम है। यह अल्लाह के हुक्म की खिलाफ़वर्जी है। लेकिन जब कोई इमाम — जो ख़ुद दूसरों को सब्र और तवक्कुल का पैग़ाम देता है — खुद इस रास्ते को चुन ले, तो सोचिए उसके हालात कितने संगीन रहे होंगे।
image_editor_output_image1078546703-1753152087267 इस्लाम में खुदकुशी हराम है। यह अल्लाह के हुक्म की खिलाफ़वर्जी है। लेकिन जब कोई इमाम — जो ख़ुद दूसरों को सब्र और तवक्कुल का पैग़ाम देता है — खुद इस रास्ते को चुन ले, तो सोचिए उसके हालात कितने संगीन रहे होंगे।
file_00000000d59c61faa6bf73e8b3e831ea इस्लाम में खुदकुशी हराम है। यह अल्लाह के हुक्म की खिलाफ़वर्जी है। लेकिन जब कोई इमाम — जो ख़ुद दूसरों को सब्र और तवक्कुल का पैग़ाम देता है — खुद इस रास्ते को चुन ले, तो सोचिए उसके हालात कितने संगीन रहे होंगे।
0_b6PUB_P9FdBtoqZv इस्लाम में खुदकुशी हराम है। यह अल्लाह के हुक्म की खिलाफ़वर्जी है। लेकिन जब कोई इमाम — जो ख़ुद दूसरों को सब्र और तवक्कुल का पैग़ाम देता है — खुद इस रास्ते को चुन ले, तो सोचिए उसके हालात कितने संगीन रहे होंगे।
image_editor_output_image1592004961-1752752366434 इस्लाम में खुदकुशी हराम है। यह अल्लाह के हुक्म की खिलाफ़वर्जी है। लेकिन जब कोई इमाम — जो ख़ुद दूसरों को सब्र और तवक्कुल का पैग़ाम देता है — खुद इस रास्ते को चुन ले, तो सोचिए उसके हालात कितने संगीन रहे होंगे।

इस्लाम में खुदकुशी हराम है। यह अल्लाह के हुक्म की खिलाफ़वर्जी है। लेकिन जब कोई इमाम — जो ख़ुद दूसरों को सब्र और तवक्कुल का पैग़ाम देता है — खुद इस रास्ते को चुन ले, तो सोचिए उसके हालात कितने संगीन रहे होंगे।

इमाम कोई आम इंसान नहीं होता। वो मस्जिद की रूह होता है। दिन में पांच वक्त आपकी रहनुमाई करता है, आपकी दुआओं में शामिल होता है, आपके बच्चों को कुरआन सिखाता है। लेकिन जब वही शख्स अपने क़र्ज़, तकलीफ़ और तन्हाई के बोझ तले दबकर टूट जाए — तो ये सिर्फ उसकी नाकामी नहीं, हमारी भी ज़िम्मेदारी की चूक है।

इस्लाम में हराम, हराम ही रहता है — इसमें “अगर” और “मगर” की कोई गुंजाइश नहीं। लेकिन दर्द को समझना भी ईमान का हिस्सा है।

हमारा फ़र्ज़ है कि हम अपने इमामों का हाल जानें। वो ख़ुद्दार होते हैं — ज़ुबान से कुछ नहीं कहेंगे, लेकिन दिल में बहुत कुछ दबा होगा।
जब भी मस्जिद जाओ, नमाज़ से पहले या बाद में एक लफ़्ज़ पूछ लिया करो: “हज़रत, सब ख़ैरियत है ना?”
हो सकता है आपका एक सवाल, एक मुस्कुराहट, एक मदद — किसी को जीने का हौसला दे जाए।

मस्जिद सिर्फ इमारत नहीं, एक रिश्ते का नाम है — और उस रिश्ते में हमारी भी जिम्मेदारी है।

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