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🗓 प्रकाशित: 09 जुलाई 2025 |

प्रस्तावना

मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव और रणनीतिक चुनौतियों के बीच, इजरायल ने अपनी सेना के लिए एक अहम और चौंकाने वाला आदेश जारी किया है। इजरायली खुफिया एजेंसियों ने अब सभी सैनिकों और अधिकारियों के लिए अरबी भाषा और इस्लाम धर्म का अध्ययन अनिवार्य कर दिया है।

यह आदेश न केवल इजरायल की रणनीतिक सोच में बदलाव को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि अब युद्ध सिर्फ हथियारों से नहीं, बल्कि संस्कृति, भाषा और समझदारी से भी लड़ा जाएगा।

क्या कहा इजरायली खुफिया निदेशालय ने?

इजरायल के खुफिया निदेशालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि:

> “अब सेना के हर स्तर के जवान और अधिकारी, चाहे वह किसी भी विभाग या पद पर हों, उन्हें अरबी भाषा और इस्लाम धर्म की बुनियादी समझ होना ज़रूरी है। यह अध्ययन अब एक “रणनीतिक आवश्यकता” बन गया है।”

यह आदेश केवल सैन्य प्रशिक्षण का हिस्सा नहीं बल्कि इजरायल की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति का एक नया स्तंभ बनता जा रहा है।

इस रणनीति के पीछे नेतन्याहू का मकसद क्या है?

प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने इस कदम को एक दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा बताया है। सूत्रों के अनुसार, यह आदेश निम्नलिखित कारणों से प्रेरित है:

अरब देशों से बढ़ते टकराव और गाज़ा वेस्ट बैंक जैसे इलाकों में खुफिया विफलताओं से सीख लेना।

स्थानीय जनसंख्या और दुश्मन संगठनों की “सोच, विश्वास और भाषा” को गहराई से समझना।

इजरायली सैनिकों द्वारा मुस्लिम समाज में गुप्त रूप से काम करने की क्षमता बढ़ाना।

नेतन्याहू मानते हैं कि दुश्मन को हराने के लिए उसकी संस्कृति को समझना अनिवार्य है।

सेना में बदलाव: सॉफ्ट पावर और इंटेलिजेंस की ओर रुख

इस नीति के लागू होने के बाद इजरायली सेना अब एक नई दिशा की ओर बढ़ रही है:

सभी जवानों को अरबी भाषा की शिक्षा दी जाएगी

सेना के प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में इस्लाम धर्म के इतिहास, आस्था, त्योहारों और धार्मिक सिद्धांतों को जोड़ा गया है।

कुछ विशेष यूनिट्स को ‘इंटरफेथ इंटेलिजेंस ट्रेनिंग’ दी जाएगी ताकि वे मुस्लिम समुदाय में बिना पहचाने काम कर सकें।

विशेषज्ञों की राय: यह एक चतुर रणनीति

मध्य-पूर्व मामलों के जानकारों का मानना है कि यह कदम बेहद चतुराई भरा है। इससे इजरायल की इंटेलिजेंस क्षमता बढ़ेगी, और वह “मनोवैज्ञानिक युद्ध” में भी आगे रहेगा।

हालांकि, आलोचकों का मानना है कि यह फैसला मुस्लिमों की जासूसी या निगरानी बढ़ाने का इशारा भी हो सकता है, जिससे भविष्य में भरोसे की खाई और गहरी हो सकती है।

निष्कर्ष

इजरायल का यह कदम केवल एक सैन्य आदेश नहीं बल्कि भविष्य की युद्धनीति का एक संकेत है — जहां भाषा, धर्म और सामाजिक समझ भी हथियार होंगे। नेतन्याहू का यह फैसला पूरी दुनिया के लिए एक नया उदाहरण बन सकता है, विशेषकर उन देशों के लिए जो धार्मिक और भाषाई बहुलता वाले क्षेत्रों में काम कर रहे हैं।