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क्या हमारी देशभक्ति अब सिर्फ एक इवेंट बनकर रह गई है?

कभी सोशल मीडिया पर देशभक्ति की लहर चलती है, कभी क्रिकेट मैदान पर चुप्पी छा जाती है। यह विरोधाभास आखिर हमें किस ओर ले जा रहा है? क्या हम सच में देश से प्रेम करते हैं या ये भावना भी अब सियासत और बिज़नेस की चालों में उलझ कर रह गई है?

डिजिटल स्ट्राइक से डिजिटल शांति तक — दो महीने में क्या बदला?

अप्रैल 2025, जम्मू-कश्मीर का पहलगाम। एक आतंकी हमले ने 28 निर्दोष लोगों की जान ले ली। देशभर में ग़म और गुस्से का माहौल था। भारत सरकार ने तुरंत एक्शन लेते हुए पाकिस्तान के खिलाफ डिजिटल स्ट्राइक किया — टीवी चैनल्स, इंस्टाग्राम अकाउंट्स और तमाम कलाकारों पर प्रतिबंध लगा दिए गए। उस वक्त यही बताया गया कि ये चैनल और अकाउंट देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं।

टीवी डिबेट्स में एंकर गरजने लगे। सोशल मीडिया पर “जय हिंद” और “पाकिस्तान मुर्दाबाद” ट्रेंड करने लगे। हर कोई कह रहा था – “ये है नया भारत!”

लेकिन अब, कुछ ही महीनों में, वो सारे बैन चुपचाप हटा लिए गए। कोई सरकारी बयान नहीं आया, कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं हुई, कोई पत्रकार ने सवाल नहीं पूछा। जैसे कुछ हुआ ही नहीं। क्या यह बदलाव जनता को बताना जरूरी नहीं था?

दिलजीत दोसांझ को गद्दार कहने वाले अब खामोश क्यों हैं?

जब एक कलाकार ने पाकिस्तानी एक्ट्रेस के साथ एक तस्वीर पोस्ट की, तो पूरा सोशल मीडिया टूट पड़ा — गद्दार, खालिस्तानी, देशद्रोही तक कह दिया गया। लेकिन जब सरकार ने उन्हीं चैनलों को बिना बताए अनबैन कर दिया, तो सब चुप हैं।

क्या यह दोहरा रवैया नहीं? क्या सरकार सवालों से ऊपर है और कलाकारों पर सारा गुस्सा निकालना ही “देशभक्ति” रह गया है?

क्रिकेट की पिच पर राष्ट्रवाद आउट?

अब एशिया कप में भारत-पाकिस्तान का मैच होने की संभावना है। BCCI, ICC और ब्रॉडकास्टिंग कंपनियों के लिए यह अरबों का खेल है। क्या यही वजह है कि पाकिस्तान से रिश्ते एकदम बदल गए?

2023 के वर्ल्ड कप में भारत-पाकिस्तान मैच ने 300 मिलियन से ज्यादा दर्शक जुटाए। स्टेडियम भरे, टीवी चैनल्स ने कमाई की बारिश कर दी। क्या अब वही पैटर्न दोहराया जा रहा है?

अगर यही सच है तो फिर सवाल उठता है — क्या देशभक्ति अब व्यापार का टूल बन गई है?

देश की जनता से क्या छिपाया जा रहा है?

सरकार ने अप्रैल में कहा था कि बैन जरूरी है क्योंकि वे चैनल भारत विरोधी हैं। अब वही चैनल्स फिर से ऑन एयर हैं। क्या दो महीने में वे “देशद्रोही” से “निर्दोष” बन गए? या फिर सच्चाई कभी बताई ही नहीं गई?

क्या यह सब सिर्फ क्रिकेट की खातिर हुआ? या अंतरराष्ट्रीय दबाव था? या फिर यह सब योजना के तहत था — पहले गुस्सा जगाओ, फिर चुपचाप रास्ता बदल दो?

देशभक्ति कोई ट्रेंड नहीं, एक ज़िम्मेदारी है

जब एक सैनिक सीमा पर जान देता है, जब एक बच्चा पहलगाम में पिता को खो देता है — तब राष्ट्रवाद सिर्फ नारों में नहीं, नीति में दिखना चाहिए। लेकिन अगर सरकारें चुप रहें और जनता सिर्फ सोशल मीडिया ट्रेंड्स में उलझ जाए — तो यह हमारे शहीदों का अपमान है।

हम दिलजीत को तो गाली देते हैं, करण जौहर की फिल्म का विरोध करते हैं, लेकिन जब सरकार पाकिस्तानी चैनल चालू करती है तो हमारी आवाज़ नहीं निकलती। क्या यह न्याय है?

निष्कर्ष: राष्ट्रवाद को ब्रांड मत बनाइए

देशभक्ति को टीआरपी, लाइक्स और बिज़नेस के लिए इस्तेमाल करना आम जनता के भरोसे के साथ धोखा है। अगर कोई नीति बदली जा रही है तो देश की जनता को जानकारी देना सरकार का कर्तव्य है।

सवाल उठाना देशद्रोह नहीं है, बल्कि सच्ची देशभक्ति है।
सैनिकों का बलिदान, आम नागरिकों का दर्द, और एक जिम्मेदार लोकतंत्र — यही मिलकर एक राष्ट्र बनाते हैं।

अब वक्त है पूछने का —
👉 क्या हम राष्ट्र के साथ हैं या सिर्फ नैरेटिव के साथ?

जय हिंद।

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